कर्नाटक का धर्मस्थल, एक ऐसा स्थान जो बरसों से आस्था, शांति और सेवा का प्रतीक रहा है। लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं, मनोकामनाएं लेकर, श्रद्धा के दीप जलाने। लेकिन आज उसी भूमि की मिट्टी में दबी हुई कुछ सच्चाइयाँ उभरकर सामने आ रही हैं – सच्चाइयाँ जो चुप थीं, लेकिन अब उनकी गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है।
सब कुछ तब शुरू हुआ, जब जुलाई 2025 की शुरुआत में, एक गुमनाम सफाईकर्मी ने दावा किया कि वह लगभग दो दशकों तक धर्मस्थल मंदिर परिसर में शवों को दफनाता रहा। उसने कहा कि ये कोई सामान्य अंत्येष्टि नहीं थी – ये ऐसे शव थे जिन्हें चुपचाप मिटा दिया गया था, बिना किसी अंतिम संस्कार, बिना किसी आखिरी विदाई।
उसका कहना था कि कई शवों पर चोट के निशान थे, कुछ पर बलात्कार के। कुछ के कपड़े फटे हुए थे, कुछ के साथ बच्चियाँ थीं – छोटी-छोटी बच्चियाँ, जिनका कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं। वो कहता है कि उसने सालों तक ये सब चुपचाप सहा, डर के मारे, परिवार की चिंता में। लेकिन अब उसकी आत्मा उसे चैन नहीं लेने दे रही थी।
जब यह खबर बाहर आई, तो पहले तो लोगों ने इसे एक और सनसनीखेज अफवाह मानकर टाल दिया। लेकिन फिर मामला तूल पकड़ने लगा। मीडिया, सोशल मीडिया, लोकल नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज़ उठानी शुरू की। सरकार पर दबाव बढ़ा, और 19 जुलाई को कर्नाटक सरकार ने विशेष जांच दल यानी SIT का गठन कर दिया।
SIT की अगुवाई कर रहे हैं डीजीपी प्रोनब मोहंती। टीम में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, फॉरेंसिक विशेषज्ञ, और वैज्ञानिक शामिल किए गए। सफाईकर्मी की गवाही के आधार पर धर्मस्थल के पास 13 ऐसी जगहों की पहचान की गई, जहाँ उसने शवों को दफनाने का दावा किया था।
खुदाई का काम 27 जुलाई से शुरू हुआ। JCB मशीनें आईं, इलाके को सील किया गया। मीडिया दूर से लाइव रिपोर्टिंग कर रही थी। पहले दिन जब खुदाई की गई, तो सबकी सांसें थमी हुई थीं – लेकिन ज़मीन चुप रही। कोई अवशेष नहीं मिला, कोई हड्डी नहीं, कोई सबूत नहीं। कई लोगों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए कि क्या ये बस एक झूठा नाटक था?
लेकिन टीम ने हार नहीं मानी। उन्होंने अगले स्थल की खुदाई शुरू की – फिर तीसरे, फिर चौथे। और फिर..
31 जुलाई की सुबह, छठे स्थल की खुदाई शुरू हुई। यह जगह बाकी स्थानों से थोड़ी अलग थी – थोड़ी ऊँचाई पर, पास में सूखी झाड़ियों का एक छोटा जंगल। फावड़े की तीसरी परत पर मिट्टी की रंगत बदल गई। कुछ सख्त लगा, जैसे लकड़ी नहीं, लेकिन मिट्टी जैसी नहीं।
जब मिट्टी हटाई गई, तो सबकी आंखें चौंधिया गईं। वहां से एक अधूरी मानव खोपड़ी मिली। कुछ हड्डियाँ, जो सीधी जमीन में नहीं थीं – उन्हें जैसे किसी ने जल्दी में दफनाया हो। साथ में एक लाल रंग का कपड़ा और कुछ पहचान-पत्र भी मिले – एक PAN कार्ड, एक ATM कार्ड।
SIT ने तुरंत फॉरेंसिक टीम को बुलाया। सैंपल लिए गए, हड्डियों को लैब में भेजा गया। शुरुआती जांच में कहा गया कि ये हड्डियाँ किसी पुरुष की हो सकती हैं – उम्र का अंदाज़ा लगाना अभी बाकी है। लेकिन ये एक संकेत था कि सफाईकर्मी झूठ नहीं बोल रहा था।
धर्मस्थल की ज़मीन के नीचे कुछ न कुछ दफन था – और वो सिर्फ मिट्टी नहीं थी, वो इंसानी सच्चाई थी।
इसी बीच एक और मोड़ आया। मंदिर प्रशासन और धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े के परिवार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दावा किया कि मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही खबरें उनके परिवार की छवि को नुकसान पहुँचा रही हैं। नतीजा – अदालत ने 8800 से ज्यादा वेबसाइट्स और लिंक को हटाने का आदेश दे दिया।
इसे ‘गैग ऑर्डर’ कहा गया। कई लोगों ने कहा कि यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता पर चोट है। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है, जहाँ अभी सुनवाई चल रही है।
इस मामले ने राजनीतिक गलियारों को भी हिला दिया। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाए कि वह मंदिर प्रशासन को बचा रही है। सरकार कहती रही कि जांच निष्पक्ष है। लेकिन इसी बीच SIT प्रमुख प्रोनब मोहंती का नाम UPSC की केंद्रीय सूची में आ गया। क्या उन्हें हटाया जाएगा? क्या SIT कमजोर की जाएगी?
लोगों के मन में शक और सवाल दोनों बढ़ते जा रहे थे।
जिस शख्स ने ये पूरी कहानी बाहर लाई, उसकी जान अब सबसे बड़ी चिंता बन गई। उसने खुद लिखा – मुख्य न्यायाधीश को, मुख्यमंत्री को, गृह मंत्री को – कि उसे और उसके परिवार को खतरा है। कई बार उसकी बात मीडिया में लीक हो गई। यहां तक कि उसकी पहचान भी उजागर हो गई।
उसकी वकील ने कहा – "हमारे मुवक्किल की जान खतरे में है, लेकिन वह सिर्फ इसलिए बोल रहा है क्योंकि उसकी आत्मा अब और चुप नहीं रह सकती।"
फिलहाल, SIT की खुदाई जारी है। 6 में से 1 स्थान पर सबूत मिल चुके हैं, बाकी 7 स्थानों पर अब खुदाई की तैयारी है। फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार है – वही रिपोर्ट बताएगी कि क्या वाकई कोई हत्या हुई थी, कब हुई थी, और किसकी हुई थी।
कुछ और लोग भी सामने आ रहे हैं, जिनके परिजन कभी धर्मस्थल में गायब हुए थे – कुछ केस फाइलों में दर्ज हैं, कुछ बस यादों में।
एक कहानी जो अभी अधूरी है
धर्मस्थल की ज़मीन ने सालों तक जो राज़ दबाए रखे, वो अब धीरे-धीरे उजागर हो रहे हैं। लेकिन यह लड़ाई सिर्फ एक आदमी की नहीं है – यह उन सभी आवाज़ों की है, जो कभी डरी हुई थीं, चुप थीं, और अ
ब बोल रही हैं।
यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई। यह सिर्फ शुरुआत है।



